ये सोच लिया हैं कि अब उस को आवाज नहीं देनी...
अब मै भी देखू वो मेरा तलबगार हैं कितना....
तेरे वादे तु ही जाने मेरा तो आज भी वही कहना है...
जिस दिन साँस टूटेगी , उस दिन आस छूटेगी...
मै चलता रहा बरसात मे आँसू छिपाने के लिये..
लोग इसे शौक समझकर मुस्कुराते रहे...
अगर किस्मत ने दिया होता एक मौका...
तो हम तेरे सिवा कुछ ना माँगते,.,.
हमने बना लिया है आशियाना नया...
जाओ यह बात फिर किसी तूफां से कह दो...
हर कोई रूठ जाता हैं मुझसे...
तुम तो दर्द के मारे हो, रुक जाओ ना दोस्त...
अब तो यह दिल भी आवारगी पर उतर आया कहता है.....
ले चल उनकी गलियो में,,,,
वरना अपनी मौत का ज़िम्मेदार तू खुद होगा......
मुस्कुराहटें कुछ वक़्त से ठहरी हैं, चहरे पर मेरे...
ये कब तलक ठहरेगी, ये भी वक़्त की बात हैं...
इतनी मोहब्बत लिख देंगे, मेरे अल्फाज हर एक पन्ने पर....
कि तेरा चेहरा हर शक्स को ,अल्फाजों में नजर आएगा...
एक लम्हे मे मन को भिगो देती हैं...
दर्द जब भी होता हैं, आँखे रो देती हैं...
चलने दो जरा आँधीया हकीकत की.....
न जाने कौन से झोंके मैं अपनो के मुखौटे उड़ जाये....
किसी पे मर जाने से शुरू होती है महोब्बत...
ऐ दोस्त इश्क जिन्दा लोगो का काम नही...
फ़िर उठी तलब तेरे लब ऐ जाम की...
फ़िर इसे हम शराब से बुझाने चले...
ऊँचे-ऊँचे मुजरिमों की पूछ होगी हश्र में,..
कौन पूछेगा मुझे मैं किन गुनहगारों में हूँ...
ये इश्क भी उस खुदा के करम की तरह है,...
जो जरूरतमंद है, बस उसी को ना मिला...
पूछ कर मेरा पता बदनामिया मोल मत ले.,.
ख़त किसी फूटपाथ पर रख दे, मुझे मिल जायेगा...
वास्ता नही रखना तो फिर मुझपे नजर क्यूं रखता है....
मैं किस हाल में हूँ जिंदा तू ये खबर क्यूं रखता है....
अजीब रिश्ता रहा कुछ अपनों से मेरा...
ना नफरत की वजह मिली,ना प्यार का सिला...
इक हमे आवारा कहना, कोई बडा इलजाम नही.
दुनिया वाले दिलवालो को और बहुत कुछ कहते है...
बस एक भूलने का हुनर ही तो नहीं था...
वरना भुलाना तो हम भी बहुत कुछ चाहते थे...
हमारी खामोशी मे सन्नाटा भी हैं और
शौर भी हैं....
तुमने देखा ही नहीँ ठीक से आँखो मे
कुछ और भी हैं....
रोने में इक ख़तरा है तालाब नदी हो जाते हैं...
हंसना भी आसान नहीं है लब ज़ख़्मी हो जाते है.
शिकन चेहरे की जिन्दगी का हिसाब देती हैं..
जिन्दगी जो भी देती हैं लाजवाब देती हैं...
आज क्यों कोई शिकवा या शिकायत नहीँ मुझसे...
तेरे पास तो लफ्जों की जागीर हुआ
करती थी...
क्या फर्क है ?
... दोस्ती और मोहब्बत मे !
....रहते तो दोनो दिल मे हि है !
लेकिन,,....फर्क बस इतना है...
बरसो बाद ....मिलने पर....
मोहब्बत नजर चुरा लेती है...
और दोस्त सीने से लगा लेते है....
इश्क हुआ उनसे तो ये बात अब समझ आई...
कि जज्बातों को हदों में समेटा नहीं जा सकता..,
ना परवाह, ना उसको जरूरत पड़ी कभी…
मै लोफर गलियों का वो ठहरे पर्देदार लोग...
कितने कम लफ्ज़ों में ज़िन्दगी को बयान करूँ..
चलो तुम्हारा नाम लेकर किस्सा ये तमाम करूँ.
फकीरों की मौज का क्या कहना साहब….
राज ए मुस्कराहट पूछा तो बोले,
सब तुम्हारी मेहरबानी हैं….
अब तो खुद पे होती है हैरानी अपना सब्र देख
कर....
तुम याद करना भूल चुके मुझे आज भी इंतजार तेरा....
दुशमन सामने आने से भी डरते थे . . .
और वो पगलि दिल से खेल के चलि गई
ऐसा क्या लिखूँ के तेरे दिल को सुकून पहुँचे,..
क्या ये काफ़ी नहीं कि मेरी दुआओं में तुम हो.,.
रहना यूं तेरे खयालों मे.,. ये मेरी आदत है...
कोई कहता इश्क... कोई कहता इबादत है...
शोर न कर धड़कन ज़रा थम जा कुछ पल के लिए....
बड़ी मुश्किल से मेरी आँखों में उसका ख्वाब
आया है....
क्यों ना फ़िर उस से मिलने का इरादा कर लूँ,..
जख्म ये सदियों पुराना तरो ताजा कर लूँ,...
जुनून, हौसला और पागलपन आज भी वो ही हैं.
“जाना“ मैने जीने का तरीका बदला हैं, तेवर
नहीँ...
तुम याद आते हो तो भी चुप रहता हूँ,...
कही आँखो को ख़बर हुई तो बरस जायेंगी...
इंसानो से मिलना तुझे आया ही नहीं "जाना"...
खुदा से मिलने की तेरी आरजू पे हंसी आती है..
अजीब सी कशमकश मे फँसी हैं मुहब्बत हमारी...
मिले तो लिपटकर रोना, ना मिले तो बिछड़ कर रोना...
जिसके जख्मों पर सारी उम्र हमने मरहम लगाये हैं...
हमारे वास्ते आज फ़िर उसने नये ख़ंज़र मंगाये हैं.,..
कमबख्त दिल तैयार ही नहीँ होता उसे भूलने के लिये,...
मै उसके आगे हाथ जोड़ता, वो मेरे पैर पड़ जाता हैं...
ये वफ़ा उन दिनों की बात हैं....
जब मकान कच्चे और लोग सच्चे हुआ करते थे.
वो जान गयी थी हमें # दर्द
में # मुस्कराने की # आदत हैं.
वो रोज नया # जख्म देती थी,
मेरी # ख़ुशी के लिए...!!!
हमने तो मोह्बत भी तेरी ओकात से ज्यादा की थी। बात अब नफरत की हैं तो सोच तेरा क्या होंगा।
सलीका सिखाया करते थे जीने का मुझे...
लाश बनाकर चले गये मुस्कुराते हुये जो...
वक़्त है झोंका हवा का और हम ठहरे पीले पत्ते फ़क़त
कौन जाने अगले साल तुम कहाँ और हम कहा...
कौन कहता है की मौत सामने आयेगी तो मै डर जाऊंगा कैलाश तक चलने वाला महादेव का दिवाना हूँ मौत को भी हर हर महादेव कहके निकल जाऊंगा
मुस्कराहट को बहुत कुछ छिपाना आता है.…
आँखों ने ये हुनर,
कभी सीखा ही नहीं...
अय दोस्त मत कर इन हसीनाओं से मोहब्बत;वह आँखों और बातों से वार करती हैं;मैंने तेरी वाली की आँखों में देखा है;वो मुझसे भी प्यार करती है.
बिखरा हुआ है अक्स मेरा तो हैरत ये है...
मेरा आईना सलामत है तो फिर टुटा क्या है...
अक्स चेहरे पे आफताब का है.
किस इलाके में घर जनाब का है !
जिस जमाने में मै हुआ पागल.
वो जमाना तेरे शबाब का है !
मेरी नजरें भी हैं कुछ आवारा.
कुछ इशारा तेरी नकाब का है !
तुमने अच्छा किया कि दिल तोड़ा.
ये जमाना ही इंकलाब का है !
यूँ तो गलत नही होते अंदाज चेहरो के ,,
लेकिन लोग वैसे भी नही होते जैसे नजर आते है .
बहुत ही आसान है जमीं पर
आलिशान भवनो को बना लेना
दिल में जगह बनाने में .....
ज़िन्दगी गुजर जाया करती है...
"मुझे छोड़कर गर वो ख़ुश हैं, तो शिकायत कैसी,
और मैं उन्हे ख़ुश भी न देख सकुं...तो महोब्बत कैसी...।"
सियासी ईट से वो रिश्तों की दीवारे बनाता है/ मोहब्बत का सबक़ देता है और तलवारे बनाता है
वो हमारे नहीं तो क्या गम है,
हम तो उन्हीं के है ये क्या कम है,
ना गम कम है ना आँसू कम हैं, देखते है रूलाने वाले में कितना दम है..???
ना ज़ख्म भरे,ना शराब सहारा हुई..!! ना वो वापस लौटीं,ना मोहब्बत दोबारा हुई..!!
तू रूठा रूठा सा लगता है...
कोई तरकीब बता मानाने की !
मैं ज़िन्दगी गिरवी रख दूंगा...
तू क़ीमत बता मुस्कुराने की !!
हमें स्कूल में त्रिकोण, चौकोण, लघुकोण, काटकोण, विशालकोण इत्यादी सब पढ़ाया जाता है!!
पर
जो जीवन में हमेशा उपयोगी हैं जो कभी पढ़ाया नाही जाता....
वो है"दृष्टिकोण
अच्छा हुआ कि पंछियो के
मजहब नहीं होते,
वरना बरगद भी परेशान हो
जाता मसले सुलझाते
सुलझाते............।
इक ये 'कोशिश' के,
कोई देख ना ले 'दिल के
जख्म',
इक 'ख्वाहिश' ये के,
'काश' कोई देखने वाला
होता................।
बारिश और मोहब्बत दोनो ही बहुत यादगार होते है फर्क सिर्फ इतना है,
बारिश मे जिस्म भीग जाता है और मोहब्बत मे आँखे....................।
तुझे पा ना सके ताे भी सारी जीदगी तूजे प्यार करेंगे.
ये जरूरी ताे नही जाे मिल ना सके उसे छाेड दिया जाऐ.........................।
कभी ले मुझ से मेरे दिन
का हिसाब,
फिर ढूंढ अपने सिवा कुछ
मेरी जिंदगी में..................।
रूठा रहे वो मुझ से ये
मंज़ूर है लेकिन,
यारो उसे समझाओ के
मेरा शहर न छोड़े......
उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे
नही लिखता,
और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे
नही लिखता.'
'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन
है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे
नही लिखता.'
'कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ
फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे
नही लिखता.'
'दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम
लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी..
सफ़ाई पे नही लिखता.'
'शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक
रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे
नही लिखता.'
'उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में
बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे
नही लिखता.'
'समंदर को परखने का मेरा,
नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे
नही लिखता.'
'पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे
नही लिखता.'
'तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने
की वजह बस ये .
क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे
नही लिखता........!!!!
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