Friday, July 29, 2016

मैं और मेरी कमाई,

सिलसिला का बहुत सुंदर गाना   

मैं और मेरी कमाई,
अक्सर ये बातें करते हैं,
टैक्स न लगता तो कैसा होता?
तुम न यहाँ से कटती,
न तुम वहाँ से कटती,
मैं उस बात पे हैरान होता,
सरकार उस बात पे तिलमिलाती ,
टैक्स न लगता तो ऐसा होता,
टैक्स न लगता तो वैसा होता...
मैं और मेरी कमाई,
"ऑफ़ शोर" ये बातें करते हैं....

ये टैक्स है या मेरी तिज़ोरी खुली हुई है ?
या आईटी की नज़रों से मेरी जेब ढीली हुई है,
ये टैक्स है या सरकारी रेन्सम,
कमाई का धोखा है या मेरे पैसों की खुशबू,
ये इनकम की है सरसराहट
कि टैक्स चुपके से यूँ कटा,
ये देखता हूँ मैं कब से गुमसुम,
जब कि मुझको भी ये खबर है,
तुम कटते हो, ज़रूर कटते हो,
मगर ये लालच है कि कह रहा है,
कि तुम नहीं कटोगे, कभी नहीं कटोगे,.......

मज़बूर ये हालात इधर भी हैं, उधर भी,
टैक्स बचाई ,कमाई इधर भी है, उधर भी,
दिखाने को बहुत कुछ है मगर क्यों दिखाएँ हम,
कब तक यूँही टैक्स कटवाएं और सहें हम,
दिल कहता है आईटी की हर रस्म उठा दें,
सरकार जो है उसे आज गिरा दें,
क्यों टैक्स में सुलगते रहें, आईटी को बता दें,
हाँ, हम टैक्स पेयर हैं,
टैक्स पेयर हैं,
टैक्स पेयर हैं,
अब यही बात पेपर में इधर भी है, उधर भी...
......................

ये कहां आ गए हम.....यूँ ही टैक्स भरते भरते ...

Friday, July 22, 2016

कर्म करो

कर्म करो तो फल मिलता है ,
       आज नहीं तो कल मिलता है।

जितना गहरा अधिक हो कुँआ ,
        उतना मीठा जल मिलता है ।

जीवन के हर कठिन प्रश्न का ,
        जीवन से ही हल मिलता है।

चादर ओढ़ कर सो जा  


आज मैंने अपने आप से पूछा कि जिंदगी कैसे जीनी चाहिए ?
मुझे मेरे *कमरे* ने जवाब दिया कि

*छत ने कहा* – ऊंचा सोंचो
*पंखे ने कहा* – दिमाग ठंडा रक्खो
*घड़ी ने कहा* – समय की कदर करो
*कैलेंडर ने कहा* – वक्त के साथ चलो
*पर्स ने कहा* – भविष्य के लिए बचाओ
*शीशे ने कहा* – अपने आप को देखो
*दीवाल ने कहा* – दूसरों का बोझ बांटो
*खिड़की ने कहा* – अपने देखने का दायरा बढ़ाओ
*फर्श ने कहा* – जमीन से जुड़ कर रहो
.

फिर मैंने बिस्तर की तरफ देखा और *बिस्तर ने कहा* –
,
चादर ओढ़ कर सो जा   पागल,
बाकी सब मोह माया है।

Friday, July 8, 2016

मैं पैसा हूँ

*मैं पैसा हूँ*
मुझे आप मरने के बाद ऊपर नहीं ले जा सकते; मगर जीते जी मैं आपको बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ।
*मैं पैसा हूँ:!*
मुझे पसंद करो सिर्फ इस हद तक कि लोग आपको नापसन्द न करने लगें।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं भगवान् नहीं मगर लोग मुझे भगवान् से कम नहीं मानते।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं नमक की तरह हूँ; जो जरुरी तो है मगर जरुरतसे ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता है।
*मैं पैसा हूँ:!*
इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जिनके पास मैं बेशुमार था; मगर फिरभी वो मरे और उनके लिए रोने वाला कोई नहीं था।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं कुछ भी नहीं हूँ; मगर मैं निर्धारित करता हूँ; कि लोग आपको कितनी इज्जत देते है।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं आपके पास हूँ तो आपका हूँ:! आपके पास नहीं हूँ तो; आपका नहीं हूँ:! मगर मैं आपके पास हूँ तो सब आपके हैं।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं नई नई रिश्तेदारियाँ बनाता हूँ; मगर असली औऱ पुरानी बिगाड़ देता हूँ।
*मैं पैसा हूँ:!*
मैं सारे फसाद की जड़ हूँ; मगर फिर भी न जाने क्यों सब मेरे पीछे इतना पागल हैं:?।
*विचार करीये:*