लंकापति रावण का सन्देश....
मैं अधर्मी नही.....अत्याचारी नही...राक्षस नही.... पर क्यूँ जलाया जाता हूँ ....
@..मैं लंका का राजा था अरुण वरुण और कुबेर मेरी मुट्ठी में थे कभी अकाल नही पड़ता था जनता खुश थी कोई आत्महत्या नही करता था मेरे राज्य में सब बराबर थे कोई ऊंच नीच जातिवाद छुआ छूत नही था..!
@..दुष्टों ने मुझे घमंडी कहा राजा के पास गुरुर नही होगा तो किसके पास होगा..?
@..मैं न्याय प्रिय था मेरी बहन सूर्पनखा ने लक्ष्मण से प्यार का इजहार किया तो आर्य पुत्र लक्ष्मण ने मेरी बहन की नाक काट दी (नाक कटना अर्थात इज्जत जाना)...
बहन की नाक कटेगी तो कौन भाई चुप बैठेगा..?
@..मैंने सीता का हरण किया लेकिन अपने महल में नही ले गया सीता के साथ कभी गलत हरकत नही की तो दुष्ट और पापी कैसा..?
@..मेरा दस सिर नही था दसों दिशाओं को दसों इन्द्रियों को एक साथ काबू में रखता था..दुष्टों ने मुझे दस सिर वाला कहकर बदनाम कर दिया..!
@..मैं राक्षस नही था ये आर्यों के दूत ऋषि मुनि खुद तो काम नही करते थे वे भोले भाले किसानों से अन्न छीनकर यज्ञ हवन के नाम से जला देते थे ताकि जनता भूख से मर जाय...वे लोग यज्ञ के नाम से जंगल को जलाकर नुक्सान करते थे...!
इसिलिये मैं उन सबकी रक्षा करता था तब दुष्टों ने षड्यंत्र कर मुझे राक्षस नाम दे दिया..!
@..अत्याचारी अधर्मी मैं नही था..बाली को छिप कर मारने का अधर्म काम आर्य पुत्र राम ने किया...!!
@..हमारे यहां राजा बनने की कभी कलह नही होती थी...अयोध्या में राजा बनने की कलह हुई जिसमे बेचारा दशरथ का प्राण गया तो अधर्मी कौन हुआ..?
अधर्म के नाम पर मुझे क्यूँ जलाया जाता है......
यदि अधर्म का नाश करना है तो....
जलाना है तो उन आजकल के राजा बने उन नेताओं को जलाओ....जिनके दस नही हजार सिर हैं.....
जलाना है तो सफेद खादी वस्त्र धारण किये उन पाखंडियों को जलाओ जो धर्म और जाति के नाम पर उंच नीच में समाज को बाँट रहे हैं....
जलाना है तो उन पाखंडी नेताओं को जलाओ जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए आम जनता को गुमराह कर लूट रहे हैं...
जलाना हैं तो उन पाखंडी साधु संतों को जलाओ जो धर्म के नाम पर बहु बेटियों का शारीरिक शोषण कर रहे हैं....
तभी अधर्म का नाश होगा...
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