Saturday, October 3, 2015

मिटा सके जो दर्द तेरा

मिटा सके जो दर्द तेरा
वो शब्द कहाँ से लाऊँ..
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चूका सकूं एहसान तेरा
वो प्राण कहाँ से लाऊँ..
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खेद हुआ है आज मुझे
लेख से क्या होने वाला..
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लिख सकूं मैं भाग्य तेरा
वो हाथ कहाँ से लाऊँ..
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देखा जो हालत ये तेरा
छलनी हुआ कलेजा मेरा..
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रोक सके जो अश्क मेरे
वो नैन कहाँ से लाऊँ..
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ख़ामोशी इतनी है क्यों
क्या गूंगे बहरे हो गए सारे..
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सुना सकूं जो हालत तेरी
वो जुबाँ कहाँ से लाऊँ..
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चिल्लाहट पहुँचा सकूं मैं
बहरे इन नेताओ को..
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झकझोर सकूं इन मुर्दॊ को
वो अलफाज कहाँ से लाऊँ...|

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