Tuesday, October 6, 2015

शायरों की मेहफिल

नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता...!
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यहाँ हर किसी को, दरारों में झाँकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा...!
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पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता,
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता!
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मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी में लोग जीने नहीं देते!
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ऐ बारिश जरा खुलकर बरस, ये क्या तमाशा है...?
इतनी रिमझिम तो मेरी आँखों से रोज होती है...!!

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