एक बार एक राज महल में कामवाली का लड़का खेल रहा था. खेलते खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ गया. वो दौड़ता-दौड़ता अपनी माँ के पास ले गया.
माँ ने देखा और समझ गयी की ये हीरा है तो उसने झूठ मूठ का बच्चे को कहा कि ये तो काँच का टुकड़ा है और उसने उस हीरे को महल के बाहर फेंक दिया.
और थोड़ी देर के बाद वो बाहर से हीरा उठा कर चली गयी. और उसने उस हीरे को एक सोनी को दिखाया,
सोनी ने भी यही कहा ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने भी बाहर फेक दिया,
वो औरत वँहा से चली गयी बाद में उस सोनी ने वो हीरा उठा लिया और जोहरी के पास गया. और जोहरी को दिखाया ।।
जोहरी को पता चल गया की ये तो एक नायाब हीरा है और उसकी नियत बिगड़ गयी और उसने भी सोनी को कहा की ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उठा के बाहर फेक दिया, वहा गिरते ही वो हीरा टूट कर बिखर गया.
एक आदमी पूरा वाकिया देख रहा था, उसने जाकर हीरे को पूछा, जब तुम्हे दो बार फेका गया तब नहीं टूटे और तीसरी बार क्यों टूट गए?
हीरे ने जवाब दिया: ना वो औरत मेरी कीमत जानती थी और ना ही वो सोनी ।। मेरी सही कीमत वो जोहरी ही जानता था. और उसने जानते हुए भी मेरी कीमत कांच की बना दी बस मेरा दिल टूट गया और में टूट के बिखर गया.
जब किसी इन्सान की सही कीमत जानते हुए भी लोग नकारा कहते है तो वो भी हीरे की तरह टूट जाता है।
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Saturday, October 3, 2015
हीरे का मोल
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