कही चाँद राहों मे खो गया कही चाँदनी भी भटक गयी,
मै चिराग वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे संवर गयी !
मेरी दास्तान का वजूद है तेरी नरम पलकों की छाँव मे,
मेरे साथ था तुझे जगना तेरी आँख कैसे झपक गयी !
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब ना हो सकी ,
तेरी याद शाखें गुलाब है जो हवा चली वो लचक गयी
कोई दर्द जी का बटाये क्या कोई चोट दिल की दिखाये क्या ,
ये बहार कितनी अजीब है मेरे जख्म फूलों से ढँक गये
तेरे हाथ से मेरे होंठ तक वही इंतजार की प्यास है ,
मेरे नाम की जो शराब थी कही रास्ते मे छलक गयी !
कभी हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरीया वही फासले ,
न कभी हमारे कदम बढे ना कभी तुम्हारी झिझक गयी !
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