Saturday, October 24, 2015

कही चाँद राहों मे खो गया

कही चाँद राहों मे खो गया कही चाँदनी भी भटक गयी, 
मै चिराग वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे संवर गयी !

मेरी दास्तान का वजूद है तेरी नरम पलकों की छाँव मे,
मेरे साथ था तुझे जगना तेरी आँख कैसे झपक गयी !

तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब ना हो सकी ,
तेरी याद शाखें गुलाब है जो हवा चली वो लचक गयी

कोई दर्द जी का बटाये क्या  कोई चोट दिल की  दिखाये  क्या ,
ये बहार कितनी अजीब है मेरे जख्म फूलों से ढँक गये 

तेरे हाथ से मेरे होंठ तक वही इंतजार की प्यास है ,
मेरे नाम की जो शराब थी कही रास्ते मे छलक गयी !

कभी हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरीया  वही फासले ,
न कभी हमारे कदम बढे ना कभी तुम्हारी झिझक गयी !
                 

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