लापता बुद्धिजीवी ...
कहाँ है बुद्धिजीवी....???
Tuesday को ईद है लेकिन मुझे अभी तक बुद्धिजीवियों की वह फ़ौज नहीं दिखायी दे रही...
जिनके सारे पक्षी मकर संक्राति पर पतंग उड़ाने से मर रहे थे ,
दिवाली के पटाखों से पूरा विश्व प्रदूषित हो जाता है ,
होली खेलने से इतना पानी बर्बाद हो जाता है कि पूरा विश्व संभवतः प्यासा मरने की कगार पर पहुँचने ही वाला होता है,
सरस्वती पूजा एवं गणेश उत्सव में मूर्ति विसर्जन से नदी प्रदूषित होती है,
शिवरात्रि पर दुध का व्यय होता है,
नवरात्रि पर आवाज़ का प्रदूषण रात को 12 बजे के बाद बंद...
शनिजयंती को तेल का व्यय,
बहुत चिंता होती है इन बुद्धिजीवियों को देश की, समाज की,
पर्यावरण की ...भई नमन है इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को । परन्तु एक सवाल अब तक मरे मन को विचलित कर रहा है कि...
ईद पर अनगिनत बेजुबान को क़त्ल कर दिया जायेगा...
फिर उनके खून को साफ़ करने के लिए लाखों लीटर पानी बहाया जायेगा,
इन बेजुबानों की हड्डियों को नदियों में एवं इधर - उधर फेंक कर बदबू फैलाई जायेगी...
तो इन बेजुबानों को बचाने के लिए इन महान बुद्धिजीवियों की अपील क्यों नहीं आई ??
सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक एक भी बुद्धिजीवी मुझे ये कहता या किसी को ये समझाता नजर नहीं आया कि इको-फ्रेंडली ईद मनाओ,
मिट्टी का या लकड़ी का बकरा बनाओ,
बेजुबानो को मत काटो
क्यों नही, बोल रहे हो ? क्या सारा ज्ञान केवल हिंदुओं के पर्वों पर ही उमड़ता है ?
क्या इन बेजुबान कटते जानवरो के लिए तुम्हारा दिल नहीं रोता जिन्हें जानबूझकर क़त्ल किया जायेगा सिर्फ दावतें उड़ाने को,
अगर सच में तुम्हें इतनी चिंता है तो एक बार तो अपील कर दो इनको बचाने की...
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