जीवन चलने का नाम हैं।
जीवन प्रतिपल परिवर्तनशील है एवम् इसी परिवर्तन को ही अपनाते चलना ही जीवंतता हैं। हमारी चेतना ही हमें सिखने-सिखाने की प्रक्रिया में सलग्न कर हमारे जीवन को चलायमान रखती हैं।
जड़ व चेतन दोनों का आग्रह अपरिवर्तित रहने का रहता है। जड़ में वांछित परिवर्तन हेतु एक निर्धारित बल का प्रयोग पर्याप्त होता है जबकि चेतन में परिवर्तन कर पाना एक कठिन चुनोती रहता हैं।
चेतन में परिवर्तन करना एक सामजिक, मनोवैज्ञानिक एवम् शैक्षिक प्रयास है एवम् अहम्, संस्कार, मान्यता, पूर्वज्ञान इत्यादि इसके प्रमुख अवरोध हैं। इन अवरोधों के कारण ही असन्तोष, विवाद एवम् प्रदर्शन विकसित होंते हैं।
एक मनुष्य होने के नाते हमें जनकल्याणकारी एवम् मानवोपयोगी परिवर्तनों को सहज स्वीकार कर परिवर्तन में सहायक भूमिका निर्वहन करनी चाहिए। किसी भी परिवर्तन के आकलन की सर्वोत्तम कसौटी हमारी आत्मा है एवम् आत्मा की आवाज़ ही ईश्वरीय सन्देश भी हैं।
जीवन चलने का नाम है एवम् बहुत छोटी कालावधि हेतु प्राप्य है अतः इसमें टकराव की अपेक्षा सार्थक उद्देश्य में संसाधनों का निवेश बेहतर विकल्प हैं।
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