एक छोटे से बालक को भगवान से मिलने की जिद थी।
वह बालक माता-पिता से पूछता तो माता-पिता रोज़ एक नई छवि दिखा देते भगवान की।
बालक के ह्रदय में भगवान से मिलने की लगन बढ़ती ही गयी।
बच्चों का मन निर्मल होता है, कोई लंबी डिमांड होती नहीं उनकी भगवान से।
उस बालक को तो भगवान के साथ बैठकर एक रोटी खानी थी, बस इसी में उसकी तृप्ति थी।
एक दिन वह बालक खुद भगवान को खोजने चल पड़ा।
उस बालक ने साथ में 6 रोटियां रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा।
चलते-चलते वह एक नदी के तट पर पहुंचा जहां एक बुजुर्ग माता बैठी हुई दिखीं, उनकी आँखों में प्रेम था, किसी की प्रतीक्षा थी।
बालक को लग रहा था जैसे ये उसी की राह देख रही हो।
वह उनके पास जाकर बैठा, उनको रोटी दी और खुद भी खाई।
यही तो उसकी अभिलाषा थी, भगवान के साथ बैठकर रोटी खाने की।
बुजुर्ग माता के झुर्रियों वाले चेहरे पर ख़ुशी आ गई, आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे।
दोनों ने आपस में प्यार और स्नेह केे पल बिताये, रात घिरने लगी तो वह बालक अपने घर की ओर चला गया।
उस बालक के गायब रहने से घर में तो कोहराम मचा था।
जब वह घर पहुंचा तो माँ ने जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी।
आज वह बालक बहुत खुश था।
माँ ने उसे इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा।
बालक ने बताया:- "माँ, आज मैंने भगवान के साथ रोटी खाई, पर भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ...!"
उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो गांववालों ने उन्हें अतिशय खुश देखकर, कारण पूछा।
वह माता बोली:- मैं दो दिन से नदी तट पर अकेली भूखी बैठी थी, मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
आज भगवान् आए, उन्होंने मेरे साथ बैठकर रोटी खाई जाते समय मुझे गले भी लगाया।
भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।"
प्रभु मूरत तिन्ही देखि तैसी...
परोपकार का आत्मिक आनंद भी ईश्वर की अनुभूति है, इसे मत गवाँएं।
आत्मा मालिक�
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